Covid-19 से ठीक होने के बाद भी भारत की बड़ी आबादी पर छाया है सांस संबंधी बीमारियों का खतरा

Covid-19 से ठीक होने के बाद भी भारत की बड़ी आबादी पर छाया है सांस संबंधी बीमारियों का खतरा

सेहतराग टीम

कोरोना संक्रमण ने संपूर्ण विश्व को हर तरह से प्रभावित किया है। लंबे समय से संकट बनी इस महामारी का अभी तक कोई ठोस चिकित्सीय समाधान नहीं ढूंढ़ा जा सका है। कोरोना वायरस वैसे तो शरीर के सभी अंगों को प्रभावित करता है, लेकिन इसका सबसे अधिक प्रभाव श्वसनतंत्र पर पड़ता है। इस वायरस की चपेट में सबसे पहले श्वसनतंत्र की विभिन्न कोशिकाएं आती हैं, जो इसके प्रभाव से बहुत तेजी से नष्ट होने लगती हैं। ऐसे में संक्रमित व्यक्ति को बुखार, खांसी व सांस लेने में तकलीफ होती है। जानें क्‍या कहते है पल्मोनरी एवं क्रिटिकल केयर फिजीशियन डॉ. अशोक कुमार सिंह।

पढ़ें- देश में बेकाबू हो रहा है कोरोना, महाराष्ट्र ने किया आग में घी का काम, जानें राज्यवार आंकड़े

पिछले कुछ महीनों में यह देखा गया है कि 70-80 प्रतिशत लोग 10-15 दिनों में पूरी तरह स्वस्थ हो जाते हैं, जबकि 20-30 प्रतिशत लोगों में श्वसनतंत्र की कार्यप्रणाली गंभीर रूप से प्रभावित होती है, जिसकी वजह से उन्हें अस्पताल में भर्ती होना पड़ता है। चिकित्सक चेस्ट एक्सरे और सीटी स्कैन के द्वारा यह समझ लेते हैं कि फेफड़ों में निमोनिया का कितना संक्रमण हुआ है और शरीर को कितनी ऑक्सीजन मिल पा रही है। कोरोना संक्रमित रोगियों में वायरस श्वसनतंत्र की सूक्ष्मतम कोशिकाओं को प्रभावित करके नष्ट करता है, जिससे एल्वियोली (सूक्ष्म कोशिकाएं) की कार्यक्षमता खत्म हो जाती है और ऑक्सीजन व कार्बन डाइऑक्साइड गैसों का आदान-प्रदान नहीं हो पाता है। इसे रेस्पिरेटरी फेलियर कहते हैं।

क्यों होती है पल्मोनरी फाइब्रोसिस:

कोरोना वायरस से संक्रमित वे रोगी जिनमें श्वसनतंत्र की एल्वियोली कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं, उनमें काफी हद तक ऑक्सीजन एवं अन्य जीवनरक्षक प्रणाली के उपयोग से सुधार आ जाता है, लेकिन वे सामान्य स्थिति में नहीं आ पाते हैं और कोशिकाओं के नष्ट होने के कारण फेफड़ों में धब्बे बन जाते हैं। उदाहरण के तौर पर यह उसी प्रकार की प्रक्रिया है, जैसे शरीर के किसी हिस्से में चोट लगने या जलने के बाद एक निशान रह जाता है। हालांकि इसके बाद भी श्वसनतंत्र की कार्यक्षमता सामान्य रहती है।

इन लोगों को है अधिक जोखिम:

कोरोना संक्रमण से श्वसनतंत्र प्रभावित होने के बाद समय के साथ इसकी कार्यप्रणाली लगभग सामान्य हो जाती है, लेकिन जो रोगी अन्य रोगों जैसे डायबिटीज, उच्च रक्तचाप, मोटापा, सीओपीडी और अस्थमा से ग्रसित हैं, उनमें पल्मोनरी फाइब्रोसिस की संभावना अधिक होती है। इसके अतिरिक्त जिन लोगों की बीमारी ने गंभीर रूप अख्तियार किया हो एवं इलाज के दौरान उन्हें वेंटीलेटर आदि की आवश्यकता पड़ी हो, उनमें भी पल्मोनरी फाइब्रोसिस होने की संभावना अधिक होती है।

लक्षण एवं निदान:

कोरोना संक्रमण से स्वस्थ होने के बाद जिन लोगों को लगातार खांसी बनी रहे, चलने में सांस फूलती हो, उनमें पल्मोनरी फाइब्रोसिस की समस्या निश्चित है। चिकित्सक इसका पता श्वसनतंत्र की जांच से लगाते हैं। जिनमें पल्स ऑक्सोमीटर, सीटी स्कैन और चेस्ट एक्सरे जैसी कई महत्वपूर्ण जांचें की जाती हैं। इससे यह पता चल जाता है कि फेफड़ों की क्षमता कितनी रह गई है और भविष्य में रोगी को किस तरह की दवाओं की आवश्यकता है। इन दवाओं का प्रयोग चिकित्सक अपने अनुभव और विवेक के आधार पर करते हैं। जबकि कुछ मरीजों में उपचार के लिए लंबे समय तक ऑक्सीजन भी देनी पड़ती है।

पल्मोनरी फाइब्रोसिस से बचाव:

कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाव ही इसका सबसे महत्वपूर्ण तरीका है, क्योंकि अभी तक इस वायरस के इलाज के लिए कोई कारगर दवा नहीं है। फिर भी यदि कोई व्यक्ति इस वायरस से संक्रमित होता है तो उसे चिकित्सक से संक्रमण की प्रारंभिक अवस्था में ही संपर्क करना चाहिए। जिससे समय से संक्रमण पर काबू पाया जा सके और फेफड़ों की कार्यक्षमता प्रभावित न हो और फाइब्रोसिस होने की आशंका भी कम रहे।

 

इसे भी पढ़ें-

भारत में सीरम इंस्टीट्यूट ने कोरोना वैक्सीन का ट्रायल रोका, जानिए पूरी जानकारी

Disclaimer: sehatraag.com पर दी गई हर जानकारी सिर्फ पाठकों के ज्ञानवर्धन के लिए है। किसी भी बीमारी या स्वास्थ्य संबंधी समस्या के इलाज के लिए कृपया अपने डॉक्टर की सलाह पर ही भरोसा करें। sehatraag.com पर प्रकाशित किसी आलेख के अाधार पर अपना इलाज खुद करने पर किसी भी नुकसान की जिम्मेदारी संबंधित व्यक्ति की ही होगी।